आईवीएफ गर्भधारण। क्या यह सामान्य प्रेगनेंसी से अलग हैं?
आईवीएफ प्रेगनेंसी सामान्य प्रेगनेंसी से अलग नहीं है। चाहे गर्भधारण किसी भी तरह से हुआ हो, गर्भधारण के पश्चात दोनों तरह के प्रेगनेंसी शारीरिक रूप से एक समान हैं| यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आईवीएफ गर्भधारण में जन्मजात विकृति और गर्भपात का जोखिम सामान्य गर्भधारण के समान ही होता है , यह बात प्रमाणित है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, गर्भ में पल रहे बच्चे का स्वास्थ्य माता एवं कुछ हद तक पिता के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है, इसलिए स्वस्थ बच्चे के लिए स्वस्थ अंडे और स्वस्थ शुक्राणुओं के साथ यह भी आवश्यक है की आईवीएफ प्रक्रिया सही ढंग से की जाए ।
आईवीएफ के मामले में एक से अधिक गर्भावस्था (Twin pregnancy ) होने की संभावना सामान्य से अधिक होती है, लेकिन सिंगल एम्ब्रियो ट्रांसफर करने से इससे बचा जा सकता है। एक ही भ्रूण प्रस्थापन करने पर, एक ही बच्चा गर्भ में पलता है जिससे प्रेगनेंसी के दौरान की जटिलता एवं अन्य रिस्क से बचा जा सकता है।
क्या आईवीएफ प्रेगनेंसी में गर्भावस्था के दौरान देखभाल अलग होती है?
आईवीएफ गर्भावस्था के दौरान आपको पहले 3 महीनों (पहली तिमाही) के दौरान कुछ अतिरिक्त सावधानियों की सलाह दी जाती है। गर्भावस्था के बाकी के ६ महीने सामान्य गर्भावस्था के समान होते हैं।
किसी भी गर्भधारण के दौरान निम्नलिखित सलाह का पालन करना चाहिए:
- उच्च तीव्रता वाली गतिविधि एवं भारी काम न करें
- कम प्रभाव वाले व्यायाम और हल्की सैर अथवा मॉर्निंग वॉक या योग करें।
- शराब, धूम्रपान, शीतल पेय और कैफीनयुक्त पेय पदार्थों से बचें। साथ ही प्रोसेस्ड एवं डीप फ्राइड फूड से बचें। गुणवत्तापूर्ण पोषण लें।
पहली तिमाही (0 से 12 सप्ताह)
आईवीएफ प्रेगनेंसी के पहले 3 महीने महत्वपूर्ण होते हैं जिसमे सामान्य गर्भधारण की तुलना में आपकी अधिक गहन निगरानी की जाती है। इस दौरान हर दो या तीन सप्ताह के अंतर से अल्ट्रासाउंड अपॉइंटमेंट और कुछ अतिरिक्त दवाइयां हो सकती हैं।
बाकी चीजें सामान्य गर्भधारण के समान होती हैं जैसे कि मॉर्निंग सिकनेस, जी घबराना, उलटी होना और पेशाब में वृद्धि जैसे लक्षण दोनों प्रकार के गर्भधारण में समान होते हैं।
पहली तिमाही स्क्रीनिंग (एफटीएस – फर्स्ट टॉयमिस्टर स्क्रीनिंग )
गर्भ में पल रहे शिशु के अनुवांशिक पुष्टि के लिए प्रेगनेंसी के पहले तिमाही में कुछ ख़ास सोनोग्राफी की जांचें एवं खून की जांचें करवाई जाती है। सामान्य गर्भधारण में भी ये जांचें अनुशंसित है। इन जांचों से अनुवांशिक स्तिथियाँ जैसे डाउन सिंड्रोम, टॉयसोमी 18 आदि से बचा जा सकता है। NT स्कैन (अल्ट्रासाउंड परीक्षा) एवं डबल मार्कर टेस्ट (मातृ रक्त परीक्षण) जोकि गर्भावस्था के 11 से 13 सप्ताह के बीच की जाती है, इन परीक्षणों से जन्मजात शारीरिक एवं मानसिक विकृतियां पैदा करने वाले अनुवांशिक स्तिथियों से पूर्ण तह बचा जा सकता है।
दूसरी तिमाही (13 से 28 सप्ताह)
पहले 12 हफ्तों के बाद, आईवीएफ प्रेगनेंसी हर पहलू में सामान्य गर्भावस्था के समान ही होती है। आपको अपना ख्याल रखना जारी रखना चाहिए और आप इस अवधि के दौरान प्रेगनेंसी का आनंद ले सकती हैं। इन बातों का ध्यान रखें :
- आयरन और कैल्शियम की खुराक शुरू करें
- नियमित रूप से व्यायाम करें
- उच्च फाइबर युक्त आहार लें
- पानी अधिक मात्रा में पीयें
- सामान्य से 300 कैलोरी अधिक खाएं
- टिटनेस, डिप्थीरिया आदि के लिए टीकाकरण कराएं।
दूसरी तिमाही स्क्रीनिंग में शामिल हैं
- विसंगति /टारगेट स्कैन – जन्मजात विकृतियों का पता करने के लिए 18 से 20 सप्ताह में अल्ट्रासाउंड परिक्षण द्वारा किया जाता है ।
- 24 से 26 सप्ताह में ग्लूकोज लोड परीक्षण मातृ रक्त जांच की जाती है, जिससे प्रेगनेंसी के दौरान डायबेटइज़ होने की संभावना को जांचा जाता है
तीसरी तिमाही (29 से 40 सप्ताह)
इसमें गर्भावस्था का 7 वां 8 वां और 9वां महीना शामिल है। तीसरी तिमाही के दौरान गर्भावस्था की देखरेख दोनों प्रकार की प्रेगनेंसी में एक सी होती है।
तीसरी तिमाही में इन बातों का ध्यान रखें
- आयरन और कैल्शियम की खुराक जारी रखें
- नियमित प्रसव पूर्व जांच कराएं
- सक्रिय रहें और नियमित रूप से व्यायाम करें
- फल, सब्जियां और प्रोटीन और फाइबर से भरपूर आहार लें
- पानी अधिक मात्रा में पीयें
तीसरी तिमाही की स्क्रीनिंग में शामिल हैं
- भ्रूण के स्वास्थ्य के लिए ग्रोथ स्कैन (अल्ट्रासाउंड जांच)
- मातृ रक्त जांच परीक्षण
क्या आईवीएफ गर्भधारण में बच्चा हमेशा ऑपरेशन (सी-सेक्शन) द्वारा होता है ? क्या नार्मल डिलीवरी हो सकती है ?
नहीं, आईवीएफ गर्भधारण में बच्चा हमेशा ऑपरेशन ( सी-सेक्शन ) द्वारा नहीं होता है। आईवीएफ गर्भावस्था में सी-सेक्शन का जोखिम सामान्य गर्भधारण के समान ही होता है।
परन्तु अधिक उम्र में गर्भधारण होने से (चाहे गर्भधारण सामान्य रूप से हुआ हो ) मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है। जिन महिलाओं में गर्भाशय की सर्जरी हुई हो जैसे मायोमेक्टॉमी या ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कोपी, ऐसे मामलों में ऑपरेशन द्वारा बच्चा होने की संभावना बढ़ जाती है | यह बढ़ी हुई संभावना IVF के कारण नहीं परन्तु पहले से गर्भाशय पर हुए प्रक्रिया के वजह से होती है।
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