बायोकैमिकल प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) क्या है?
सामान्यतः प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) की जाँच खून या पेशाब की जाँच द्वारा की जाती है जिसमे बीटा एचसीजी नामक (bHCG) एक हार्मोन की जाँच होती है। अगर किसी भी गर्भावस्था में शुरू में यह जांच पॉजिटिव आती है लेकिन कुछ दिनों बाद किसी वजह से प्रेगनेंसी आगे नहीं बढ़ती है उसे बायोकैमिकल प्रेगनेंसी या बायोकैमिकल गर्भावस्था कहते है। आमतौर पर यह प्रक्रिया गर्भावस्था के 5 वें सप्ताह से पहल हो जाती है।
क्या यह वास्तविक गर्भावस्था होती है ?
यह वास्तव में गर्भावस्था ही होती है, लेकिन किसी कारण से जब गर्भावस्था आगे नहीं बढ़ पाती है तब उसे बायोकैमिकल प्रेगनेंसी या बायोकैमिकल गर्भपात (मिसकैरेज) भी कह सकते है। आमतौर पर जब प्रेगनेंसी आगे बढ़ती है तो पहले खून की जाँच में पॉजिटिव आती है और उसके कुछ समय बाद सोनोग्राफी में भी प्रेगनेंसी बढ़ती हुई दिख सकती है।
लेकिन बायोकैमिकल प्रेगनेंसी में केवल खून और पेशाब की जाँच ही पॉजिटिव आती है और क्योंकि यह प्रेगनेंसी आगे नहीं बढ़ती इस वजह से सोनोग्राफी में वह नहीं आती है। इस स्थति को बायोकैमिकल प्रेग्नेंसी (गर्भावस्था) कहते है और हाँ यह एक वास्तविक गर्भावस्था होती है ।
बायोकैमिकल मिसकैरेज (गर्भपात) क्या है?
बायोकैमिकल प्रेगनेंसी और बायोकैमिकल मिसकैरेज एक ही स्थति के दो अलग अलग नाम है। इसमें दोनों ही स्थति में एक गर्भावस्था (प्रेगनेंसी) बनती है लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पाती। उसके आगे न बढ़ने की वजह से वह गर्भपात के रूप में शरीर से निकल जाती है। यह प्रक्रिया इतनी जल्दी होती है की कई बार महिला को पता भी नहीं होता की वह प्रेगनेंट है।
बायोकैमिकल प्रेगनेंसी कितनी आम हैं ?
– आमतौर पर स्वस्थ महिलाओ में बायोकैमिकल प्रेगनेंसी की दर 13% से 22% के बीच पाई जाती है। इसका अर्थ यह है की, भले ही महिला को पता न हो लेकिन हर 5 में से 1 महिला को बायोकैमिकल प्रेगनेंसी या बायोकैमिकल गर्भपात होता है और यह बहुत आम समस्या है।
– टेस्ट ट्यूब बेबी या IVF प्रेगनेंसी में 18% से 22% बायोकैमिकल प्रेगनेंसी देखी जाती है l जिसका कारण यह है की इसमें प्रेगनेंसी टेस्ट जल्दी किया जाता है।
क्या IVF से प्रेग्नेंसी होने पर बायोकैमिकल प्रेगनेंसी का खतरा ज्यादा होता है ?
आमतौर पर IVF से होने वाली प्रेगनेंसी में प्रेगनेंसी की जाँच (bHCG) बहुत जल्दी कर ली जाती है इसलिए महिला को प्रेगनेंसी ठहरने का पता भी जल्दी चलता है। ऐसे में जब वह प्रेगनेंसी आगे नहीं बढ़ती तो उसे बायोकैमिकल प्रेगनेंसी कहते है l क्योंकि साधारण गर्भधारण में यह जाँच इतनी जल्दी नहीं की जाती है, कई महिलाओं को इस स्थति का पता नहीं चलता l इस स्थति से ऐसा प्रतीत होता है की IVF में बायोकैमिकल प्रेगनेंसी ज्यादा होती है जबकि यह सच नहीं है।
बायोकैमिकल प्रेगनेंसी या बायोकैमिकल गर्भपात (मिसकैरेज) कैसे होता है ?
जब भी किसी महिला के शरीर में भ्रूण बनता है, तब भ्रूण की कुछ कोशिकाएं bHCG नामक एक हार्मोन का उत्पादन करती है। बीटा HCG की खून की जाँच या पेशाब की जाँच पॉजिटिव आने पर हम कह सकते है की प्रेग्नेंसी या गर्भावस्था है।
भ्रूण जैसे – जैसे विकसित होता है वैसे – वैसे वो गर्भाशय में जाकर रुकता है और bHCG हॉर्मोन की उत्पादन को बढ़ा देता है। परन्तु कभी कभी यह भ्रूण आगे विकसित नहीं होता और ऐसे में धीरे धीरे bHCG हॉर्मोन का लेवल गिरने लगता है। ऐसे भ्रूण जो आगे विकसित नहीं हो पा रहे हो और उनका गर्भपात हो जाए तो उसे बायोकैमिकल मिसकैरेज कहते है। एक प्रेगनेंसी का पहले पॉजिटिव आना लेकिन उसी प्रेगनेंसी का सोनोग्राफी में न पाया जाना भी बायोकैमिकल मिसकैरेज कहा जाता है।
बायोकैमिकल प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) के लक्षण क्या हैं?
– आपकी अपेक्षित तिथि से लगभग एक सप्ताह की देरी से माहवारी आना।
– गर्भावस्था परीक्षण (होम प्रेग्नेंसी टेस्ट या यूरिन प्रेगनेंसी टेस्ट) पॉजिटिव आना, लेकिन कुछ दिनों के बाद माहवारी आ जाना।
– पॉजिटिव प्रेगनेंसी टेस्ट के कुछ सप्ताह बाद नेगेटिव प्रेगनेंसी टेस्ट परीक्षण आना।
– माहवारी के दौरान सामान्य से अधिक भारी रक्तस्राव एवं दर्द होना।
– पॉजिटिव प्रेगनेंसी test के बाद गर्भावस्था के शुरुआती लक्षणों का अनुभव न होना।
किन स्थ्तियो में बायोकैमिकल गर्भावस्था होने का खतरा ज्यादा है ?
निम्नलिखित में से कोई भी स्थति होने से बायोकैमिकल गर्भावस्था का खतरा बढ़ सकता है:
– महिला की आयु 35 से अधिक होना
– मधुमेह (शुगर)
– पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) – अंडाशय की बीमारी
– थाइराइड से जुड़े विकार
– ब्लड क्लॉट डिसऑर्डर (खून में थक्के जमने की बीमारी)
बायोकेमिकल प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) का पता कैसे किया जा सकता है ?
बायोकेमिकल प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) का पता ज्यादातर महिला के माहवारी चक्र की तारीख, अंतिम माहवारी की तारीख, यूरिन या सीरम बीटा HCG स्तरों के बारे में जानकारी लेने के बाद किया जा सकता है।
क्या बायोकेमिकल गर्भावस्था का कोई इलाज है?
बायोकेमिकल गर्भावस्था के लिए कोई विशेष उपचार नहीं है। लेकिन अगर बार–बार यह हो रहा है, तो मरीज को किसी अनुभवी प्रजनन विशेषज्ञ या इन्फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से परामर्श लेना चाहिए।
बायोकेमिकल प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) के मानसिक प्रभाव क्या हैं?
एक बायोकेमिकल प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) में व्यक्ति और उसके साथी की ओर से विभिन्न भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं। यदि निःसंतानता एक चिंता का विषय रहा है तो बायोकेमिकल प्रेगनेंसी पहले से चल रहे उपचार के तनाव को बढ़ा सकता है।
कई बार मरीजों को यह जानकर चिंता और कभी–कभी तनाव पैदा हो सकती है कि गर्भावस्था हो सकती थी परन्तु नहीं प्रेग्नेंसी नहीं ठहर पाई l
नुकसान या हानि को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह समझना अधिक महत्वपूर्ण है कि जो भ्रूण आगे नहीं बढ़ पाए उनमे ज्यादातर दोषपूर्ण डीएनए होने की वजह से उनका गर्भपात हो गया। साथ ही ये समझे की बायोकेमिकल प्रेगनेंसी एक आम समस्या है और इस बात की संभावना है कि अगली गर्भावस्था स्वस्थ होगी। इसलिए ऐसे में सकारात्मक रहना ज्यादा जरुरी है l
बायोकैमिकल प्रेगनेंसी होने की स्थति में क्या करे ?
- अपनी समस्या, इंदौर इन्फर्टिलिटी के डॉक्टर के साथ साझा करने से आपको इसका इलाज बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
- 2. कोशिश करे की इस दौर में आप ज्यादा स्ट्रेस न ले और अपने परिवार एवं दोस्तों के साथ अच्छा समय व्यतीत करे।
बायोकेमिकल प्रेगनेंसी की प्रमुख बिंदुओं का सारांश :
- यह बहुत प्रारंभिक स्तर पर होने वाला गर्भपात (प्रेगनेंसी लॉस ) है। जो की 5वे सप्ताह के भी पहले एवं सोनोग्राफी पर प्रेगनेंसी पता लगने के पहले का प्रेगनेंसी लॉस है।
- यह सिर्फ बीटा एचसीजी टेस्ट से ही पता लगाया जा सकता है।
- यह महिला के प्रजनन स्वास्थ्य या प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डालता है।
- यह पहले के पॉजिटिव प्रेगनेंसी टेस्ट के बाद नेगेटिव प्रेगनेंसी टेस्ट का एक कारण हो सकता है।
- इस परिस्थति में माहवारी के वक्त बहुत दर्द और 1 हफ्ते की देरी भी हो सकती है।