कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के मन में माता पिता बनने का ख्याल शायद उस वक्त न आए परन्तु यदि मरीज भविष्य में यह विकल्प सुरक्षित रखना चाहे तो उन्हें अपनी प्रजनन क्षमता को संरक्षित करने पर विचार करना चाहिए। कैंसर का इलाज शुरू होने से पहले प्रजनन क्षमता या फर्टिलिटी को सुरक्षित रखने के कई तरीके हैं।
आधुनिक तकनीकों ने प्रजनन संरक्षण (फर्टिलिटी प्रीज़र्वेशन) को पहले से कहीं अधिक सुरक्षित बना दिया है। जो महिला एवं पुरुष कैंसर या इसके जैसी कोई अन्य बीमारी से पीड़ित है उनके मन में अपनी प्रजनन क्षमता को लेकर कुछ सवाल आना सामान्य है। जानिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी कैंसर के मरीजों के लिए जिससे वे अपने भविष्य को सुरक्षित रख सकते है।
क्या कैंसर के उपचार से प्रजनन प्रणाली पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ सकता है ?
कैंसर के विभिन्न उपचार प्रजनन प्रणाली को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करते हैं।
कीमोथेरेपी, विकिरण अर्थात रेडियोथेरेपी और सर्जरी आपके प्रजनन प्रणाली को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
आम तौर पर औषधि की मात्रा एवं उपचार की अवधि जितनी अधिक हो, प्रजनन प्रणाली पर दुष्प्रभाव होने की संभावना उतनी ही ज़्यादा होती है।
कैंसर के उपचार से आपकी प्रजनन प्रणाली पर यथार्त रूप से क्या असर हो सकता है, यह आप अपने विशेषज्ञ से विस्तार में चर्चा कर जान सकते हैं।
कैंसर का इलाज शुरू होने से पहले प्रजनन संरक्षण के क्या विकल्प है ?
कैंसर का इलाज शुरू होने से पहले महिला एवं पुरुष दोनों के लिए प्रजनन संरक्षण के अलग अलग विकल्प होते है। जैसे –
पुरुषो के लिए -
1. शुक्राणुओं का संग्रहण : कैंसर का इलाज शुरू होने से पहले पुरुषो के शुक्राणुओं का संग्रहण किया जा सकता है । कैंसर के इलाज की एक भी सत्र से शुक्राणुओं की संख्या, गुणवत्ता एवं डी.एन.ए. की समग्रता पर विपरीत असर पड़ता है। इसलिए शुक्राणुओं का संग्रहण कैंसर का इलाज शुरू करने से पहले करना अत्यधिक जरूरी है।
शुक्राणुओं को संग्रहीत रखने की निर्धारित समय सीमा 10 वर्ष होती है, इन्ही शुक्राणुओं का उपयोग गर्भधारण हेतु बाद में किया जा सकता है।
2. टेस्टिक्युलर टिश्यू का संग्रहण : यह विकल्प उन मरीजों के लिए उपलब्ध है जिनके वीर्य में शुक्राणुओं की प्राप्ति नहीं की जाती है। इस माइनर सर्जरी के पश्चात टेस्टिक्युलर टिश्यू का संग्रहण किया जाता है, इस प्रक्रिया के 3 से 4 घंटे के पश्चात मरीज़ घर जा सकता है।
महिलाओं के लिए -
1. अण्डों का संग्रहण : अविवाहित स्त्रियों हेतु अण्डों का संग्रहण बहुत ही आसानी से किया जा सकता है। अण्डाशय में अण्डे बनाने के लिए कुछ दिनों तक इंजेक्शन देने पड़ते हैं जिसके पश्चात बेहोश कर एक बारिक सुई से अण्डकोष में से अण्डों को निकालकर संग्रहीत किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में 12-14 दिनों का समय लगता है ।
2. भ्रूणों का संग्रहण : भ्रूण संग्रहण की प्रक्रिया कई दशकों से एक सिद्ध एवं सफल तरीका है। वे महिलाएँ जो कि शादीशुदा है, जिनके जीवनसाथी निश्चित हैं या जो दाता के शुक्राणुओं का उपयोग करना चाहती हैं, उनके लिए भ्रूण संग्रहण करना एक अच्छा विकल्प है। यह प्रक्रिया टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया जैसी है परन्तु इसमें भ्रूणों को गर्भाशय में प्रस्थापित करने के बजाय संग्रहीत कर लिया जाता है। कैंसर का ट्रीटमेंट पूर्ण होने के पश्चात सही समय पर इन संग्रहीत भ्रूणों को गर्भाशय में प्रस्थापित किया जाता है।
3. अण्डाशय की कोशिकाओं का संग्रहण : इस विकल्प को तब चुना जाता है जब मरीज़ को कैंसर का इलाज तुरंत शुरू करना पड़ता है या अण्डाशय को उत्तेजित कर अण्डे निकालने की प्रक्रिया में लगने वाले इंजेक्शन का कैंसर पर कोई विपरीत असर पड़ने की संभावना होती है । इस प्रक्रिया में अण्डाशय से अण्डकोशिकाओं को निकाल उनका संग्रहण किया जाता है एवं गर्भधारण का प्रयास किया जा सकता है।
कैंसर के इलाज के पश्चात, प्रजनन प्रणाली को संरक्षित करने के क्या विकल्प होते है ?
पुरुष हेतु : शुक्राणुओं का संग्रहण कैंसर के इलाज के पूर्व करना उचित है, परन्तु यदि किसी कारणवश आप ऐसा न कर पाए हों तो विकिरण या कीमोथेरेपी के बाद आपको शुक्राणुओं के संग्रहण के लिए कितना इंतजार करना चाहिए, इस बारे में अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
महिला हेतु : अण्डे, भ्रूण या अण्डकोशिकाओं का संग्रहण आमतौर पर कैंसर के इलाज से पहले किया जाता है। यदि आपकी प्रजनन क्षमता इलाज के पश्चात भी अप्रभावित है तो ये प्रक्रियाएं इलाज के पश्चात भी की जा सकती है। कई बार इलाज के पश्चात मरीज़ों को यह चिंता रहती है कि उन्हें वक्त से पहले रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज़) आ सकती है इस वजह से वह अपने प्रजनन क्षमता को समय रहते संग्रहित कर सकते हैं।
कैंसर का इलाज पूर्ण होने पर मरीज को कैसे पता चलेगा कि उसकी प्रजनन क्षमता पर इलाज का क्या असर हुआ है ?
पुरुषो में : उपचार के समाप्त होने पर वीर्य की जाँच की जा सकती है जो एक बहुत ही साधारण परीक्षण है। इससे आपके शुक्राणुओं के स्वास्थ्य एवं प्रजनन क्षमता के बारे में पता किया जा सकता है।
महिलाओं में : यदि उपचार के पश्चात बिना दवाई के माहवारी आती है तो हो सकता है कि आपकी प्रजनन क्षमता पर कोई असर न पड़ा हो, खून की जाँच, हॉर्मोन परीक्षण एवं सोनोग्राफी द्वारा प्रजनन क्षमता की जाँच की जा सकती है।
Learn When and How to safeguard your fertility before Cancer Treatment.
कैंसर का इलाज पूरा होने के बाद मरीज के माता-पिता बनने के क्या-क्या विकल्प है ?
पुरुष : यदि इलाज पूरा होने पर मरीज के शुक्राणुओं (वीर्य) की जाँच की रिपोर्ट सामान्य है तो आप प्राकृतिक रूप से गर्भधारण कर सकते हैं। अगर इलाज शुरू होने के पहले आपने शुक्राणुओं को संग्रहीत किया है, तो आप उन शुक्राणुओं का उपयोग आय.वी.एफ. पद्धति द्वारा गर्भ धारण करने में कर सकते हैं।
महिला : यदि कैंसर के इलाज के बाद भी मरीज की प्रजनन क्षमता सामान्य है तो आप प्राकृतिक रूप से भी गर्भधारण कर सकती हैं । यदि इलाज से पहले आपने अण्डे, भ्रूण या अण्डकोशिकाओं का संग्रहण किया है तो आप IVF पद्धति से गर्भधारण करने में इनका उपयोग कर सकती हैं।
NOTE : कैंसर के इलाज के पश्चात भी कई लोगों को बच्चे होते हैं जिनमें से कुछ लोगों को इलाज की ज़रुरत नहीं पड़ती है एवं कुछ लोगों को IVF पद्धति की आवश्यकता पड़ सकती है।
कैंसर के इलाज के बाद यदि महिला अपनी गर्भावस्था को जारी रखने में उपयुक्त न रहे तो क्या वह तब भी माँ बन सकती है ?
यदि महिला ने अपने अण्डे, भ्रूण या अण्डकोशिकाओं का संग्रहण किया है, और कैंसर के इलाज के बाद बच्चेदानी में किसी वजह से गर्भधारण नहीं कर सकती तो उस स्थिति में मरीज के पास सरोगेसी का विकल्प रहता है।
सरोगेसी में महिला अपने अण्डे एवं भ्रूण से किसी और की बच्चेदानी का उपयोग कर अपने अनुवांशिक बच्चे को जन्म दे सकती हैं। सरोगेसी हमारे देश में पूर्णतः वैध है एवं आसानी से की जा सकती है।
कैंसर के इलाज के बाद गर्भाधारण करने से मरीज को कोई नुकसान हो सकता है ?
वर्तमान में उपलब्ध अध्ययनों से पता चलता है कि कैंसर के बाद गर्भावस्था से कैंसर की बीमारी पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता है। गर्भधारण करने से संभावित आयु में भी कोई कमी नहीं आती है।
बच्चेदानी या उसके आसपास के कैंसर के इलाज में यदि रेडियोथेरेपी या सिकाई द्वारा इलाज किया गया हो तो उस स्थिति में अधूरे महीने में डिलीवरी होने का खतरा होता है। ऐसे में सरोगेसी के बारे में सोचा जा सकता है।
कैंसर का इलाज पूरा होने के बाद अगर शुक्राणुओं की जाँच सामान्य हो तो क्या प्राकृतिक तौर पर प्रेगनेंसी होने में कोई खतरा है ?
जब कैंसर के इलाज के समय कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी का उपयोग किया गया हो तो उस स्थिति में शुक्राणुओं की गुणवत्ता एवं डी.एन.ए. की समग्रता पर विपरीत असर पड़ता है।
यह दुष्प्रभाव 1 से 2 वर्ष में अपने आप ठीक हो जाता है जिसके पश्चात गर्भधारण करने में कोई खतरा नहीं होता है।
कैंसर के मरीजों का इलाज पूरा होने के बाद जब उनको बच्चे होते हैं तो क्या उन बच्चों को विकृति या कैंसर होने की संभावना ज़्यादा होती है ?
कैंसर के मरीजों के बच्चों में विकृतियों का दर सामान्य से अधिक नहीं होता है। विकृतियों का दर सामान्य आबादी में लगभग 2% होता है। कैंसर मरीजों के बच्चों में भी यही दर पाया गया है। बच्चों में कैंसर होने की संभावना भी सामान्य दर जितनी ही होती है।